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कॉलेजियम सिस्टम पर कानून मंत्री की टिप्पणी से SC नाराज, बोला-हमें निर्णय लेने पर मजबूर न करें…

नई दिल्ली। कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच खींचतान तेज हो गई है। केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू की कॉलेजियम पर टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सख्त ऐतराज जताया है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी पर दो टूक कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। नियुक्तियों में देरी की जमीनी हकीकत यह है कि नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है। कोर्ट ने पूछा कि सिस्टम कैसे काम करेगा? कई नाम पिछले डेढ़ साल से लंबित है। ऐसा नहीं हो सकता है कि आप नामों को रोक सकते हैं। यह पूरी प्रणाली को निराश करता है।

कॉलेजियम के तहत जजों की नियुक्ति पर क्या बोला कोर्ट?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘जमीनी हकीकत यह है… नामों को मंजूरी नहीं दी जा रही है। सिस्टम कैसे काम करेगा? कुछ नाम पिछले डेढ़ साल से लंबित हैं। ऐसा नहीं हो सकता है कि आप नामों को रोक सकते हैं, यह पूरी प्रणाली को निराश करता है … और कभी-कभी जब आप नियुक्ति करते हैं, तो आप सूची से कुछ नाम उठाते हैं और दूसरों को स्पष्ट नहीं करते हैं। आप जो करते हैं वह प्रभावी रूप से वरिष्ठता को बाधित करता है। कई सिफारिशें चार महीने से लंबित हैं, और समय सीमा पार कर चुकी हैं। समयसीमा का पालन करना होगा।’ एपेक्स कोर्ट एक नाम का उल्लेख करते हुए बताया कि जिस वकील के नाम की सिफारिश की गई थी, उसकी मृत्यु हो गई है, जबकि दूसरे ने सहमति वापस ले ली है।

हमें निर्णय लेने पर मजबूर न करें…

नियुक्तियों में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मस्टर पास नहीं कर रहा है इसलिए नियुक्तियों में देरी की जा रही है। यही कारण है सरकार के खुश नहीं होने और देरी करने का, सरकार क्या इसलिए नामों को मंजूरी नहीं दे रही है। कॉलेजियम की सिफारिशों को रोके रखी सरकार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र अपनी आपत्ति बताए बिना नामों को वापस नहीं ले सकता। इसने केंद्र को न्यायिक फैसले की चेतावनी भी दी। सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने कहा कि कृपया इसका समाधान करें और हमें इस संबंध में न्यायिक निर्णय लेने के लिए मजबूर न करें।

क्यों सुप्रीम कोर्ट ने की सख्ती टिप्पणी, क्या कहा था किरण रिजिजू ने?

जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हालिया टिप्पणी की थी। रिजिजू  ने जजों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका अधिक नहीं होने पर अपना असंतोष व्यक्ति किया था। उन्होंने वर्तमान नियुक्ति प्रणाली या कॉलेजियम प्रणाली को संविधान के लिए विदेशी करार दिया है। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने विवेक से एक अदालत के फैसले के माध्यम से कॉलेजियम बनाया था। यह देखते हुए कि 1991 से पहले सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी। एक मीडिया हाउस के समिट में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सभी के लिए विशेष रूप से सरकार के लिए एक पवित्र दस्तावेज है। उन्होंने सवाल किया था कि कोई भी चीज जो केवल अदालतों या कुछ न्यायाधीशों द्वारा लिए गए फैसले के कारण संविधान से अलग है, आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि फैसला देश द्वारा समर्थित होगा।

कोर्ट ने कहा-हमारी भावनाओं को सरकार को कराए अवगत

सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति पर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ‘कभी-कभी मीडिया की खबरें गलत होती हैं।’ इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि ‘श्री अटार्नी जनरल, मैंने सभी प्रेस रिपोर्टों को नजरअंदाज कर दिया है, लेकिन यह किसी हाई अथॉरिटी का इंटरव्यू है … मैं कुछ नहीं कह रहा हूं। अगर हमें करना होगा तो हम निर्णय लेंगे।’ कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा प्रपोज्ड हायर कोर्ट्स के लिए नामों को मंजूरी देने में देरी पर केंद्र को अदालत की भावनाओं से अवगत कराने के लिए कहा। अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को आश्वासन दिया कि वे इस मामले को देखेंगे। इसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 8 दिसंबर को तय किया।

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