ज्योतिष

गणपति के स्वरूप में छिपे हैं कई संकेत, जो प्रकट करते हैं गहरे रहस्य

गणपति का स्वरूप अद्भुत और अलौकिक है जो उन्हें अन्य किसी भी देवता से अलग करता है. वह बुद्धि के देवता कहे जाते हैं. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को उनका जन्म माना जाता है और अनंत चतुर्दशी तक गणेश उत्सव मनाया जाता है. आइए उनके शरीर के अलग अलग अंगों और उनके रहस्य को समझने का प्रयास करते हैं.

कान

गज के कान विशाल होते हैं, बिल्कुल सूप के आकार के. इनमें भी एक खास बात यह होती है कि गज अपने कान हवा में हिलाते रहते हैं इसके पीछे गहरा विज्ञान है. हाथी की खाल मोटी होती है जिसके कारण खून बाहर की वायु से ठंडा नहीं हो पाता है और गजराज अपने खून को अपने कान की महीन शिराओं से गुजार कर हिलाते हुए उसे ठंडा कर लेते हैं. इससे उनमें विवेक और धैर्य उत्पन्न होता है और क्रोध नहीं आता है. इसलिए श्री गणपति विवेक के देवता हैं, अतिशीघ्र क्रोधित नहीं होते हैं. बुद्धि के स्वामी का कान हिलाने का अर्थ है कि आप सुनने पर ध्यान लगाएं. इसका यह भी अर्थ है कि गणपति सदैव अपने भक्तों की बात सुनने के लिए आतुर रहते हैं.

आंख
हाथी की आंख छोटी होती है, इसका अभिप्राय अंतर्मुखी होना है. बुद्धिमान होने के लिए अंतर्मुखी होना आवश्यक है. छोटी आंख का एक दूसरा अभिप्राय यह भी है वह सब पर दृष्टि रखती है लेकिन देखने से सरलता से यह नहीं पता लगता है कि वह कहां देख रहे हैं. इसलिए गणपति जी की दृष्टि सभी भक्तों के कर्मों पर रहती है.

सूंड़
सूड़ का अभिप्राय यहां पर साउंड से है. सूंड के अंदर इस तरह की मैकेनिज्म होता है कि गज सूंड़ के जरिए ऐसी दिव्य तरंगें प्रसारित करता है जो मनुष्य को सुनाई नहीं देती हैं लेकिन दूसरा गज उसे सरलता से समझ लेता है. इसके पीछे की साइंस ये है कि वह 20 हर्ट्ज के नीचे की तरंगे प्रेषित करते हैं. एक विशेष बात यह समझनी है कि हमारा मस्तिष्क भी 20 हर्ट्ज के नीचे की तरंगे प्रेषित करता है जिसे कभी-कभी हम टैलीपैथी के रूप में महसूस भी करते हैं. यानी गणपति जी मानस पटल की चिंताओं को बिना बताए ही समझ लेते हैं और अपनी ओर से मानसिक तरंगों के माध्यम से सकारात्मक विचार प्रेषित करते हैं.

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