ज्योतिष

आज गंगा सप्तमी पर ये व्रत कथा पढ़ने से मिलेगी पापों से मुक्ति, जीवन में होगी सुख की एंट्री!

वैदिक ज्योतिष के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी मनाई जाती है. इस बार 14 मई मंगलवार के दिन गंगा सप्तमी मनाई जाएगी. सनातन शास्त्रों में मां गंगा की महिमा का खूब वर्णन मिलता है. धार्मिक मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान करने में व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं, भक्तों को आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है.

गंगा नदी में स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं. मां गंगा की कृपा पाना चाहते हैं, तो गंगा सप्तमी पर स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से मां गंगा करें. इसके साथ ही मां गंगा की पूजा के दौरान व्रत कथा करने से पापों और कष्टों से छुटकारा मिलता है.

धार्मिक ग्रंथों में मां गंगा की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है. त्रेता युग में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर अयोध्या में राज करते थे लेकिन उनके मन में सम्राट बनने की गहन इच्छा थी. इसलिए उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ करने की ठान ली और पुत्रों को घोड़े के साथ पृथ्वी भ्रमण की आज्ञा दी.  इस दौरान जब राजा सगर के पुत्र पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे, तभी अश्वमेघ घोड़ा खो गया. राजा सगर को इस बात का पता लगने पर उन्होंने अश्वमेघ घोड़ा किसी भी कीमत पर लाने को बोला.

राजा सगर के पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिला ऋषि के आश्रम पहुंच गए. वहां उन्होंने घोड़े का बंधा देखा, तो उन्हें ये विश्वास हो गया कि घोड़े की चोरी कपिला ऋषि ने ही की है. ये देख कर राज सगर के पुत्र क्रोधित हो गए और कपिला ऋषि को ललकारा और अपमानित किया. जिससे कपिला ऋषि क्रोधित हो उठे और तभी राजा सगर के पुत्र को भस्म कर दिया.

राजा सगर को इस बात की जानकारी होने पर उन्होंने अम्सुमन को ये कार्य सौंपा और वे उस कार्य में सफल भी हुए. इसके साथ ही पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए उन्होंने कपिला ऋषि से उपाय भी जाना. उस  समय कपिला ऋषि मे बताया कि मां गंगा की उनके पितरों का उद्धार कर सकती हैं.  अपने पुत्रों को मोक्ष दिलाने की जगह राजा ने अश्वमेघ यज्ञ किया. इसके बाद अम्सुमान को सत्ता सौंप दी और खुद तपस्या के लिए वन चले गए. कालांतर में पूर्वजों ने पितरों को उद्धार दिलाने के लिए मां गंगा की कठिन तपस्या की, लेकिन उसमें उन्हें सफलता नहीं मिली.

कालांतर में रादा दिलीप ने पुत्र भगीरथ ने राज त्याग कर हिमालय पर मां गंगा की तपस्या की. इसमें उन्हें सफलता भी मिली. अंतः मां गंगा धरती पर प्रकट हुईं. मां गंगा के वेग को रोकने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपना जटाओं में समेट लिया. तब फिर से भगीरथ ने दोबारा मां गंगा की तपस्या की.  तब मां गंगा ने भगवान शिव की तपस्या करने की सलाह दी. भगवान शिव को प्रसन्न करने के बाद भगीरथ को पितरों को मोक्ष दिलाने में सफलता मिली.

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