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जम्मू-कश्मीर में मतदाताओं का सामना करना नहीं चाहती BJP : उमर अब्दुल्ला

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि केंद्र सरकार और बीजेपी जम्मू कश्मीर में चुनाव के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे डरे हुए हैं।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) चुनाव में एनसी-कांग्रेस गठबंधन की व्यापक जीत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के खिलाफ लोगों के गुस्से का नतीजा है।

सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उमर ने गठबंधन पर भरोसा जताने और इन चुनावों में भाजपा की हार के लिए कारगिल के लोगों को धन्यवाद दिया।

उन्होंने कहा, “भाजपा अब कहेगी कि यह कारगिल में मुस्लिम मतदाताओं के कारण था। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या 5 अगस्त 2019 को किया गया जम्मू-कश्मीर का विभाजन धार्मिक आधार पर था। अगर ऐसा था, तो मुझे भाजपा को याद दिलाना होगा कि लद्दाख एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, हालांकि वहां बौद्ध आबादी की एक बड़ी संख्या है।”

उन्होंने कहा, ”हमने ये चुनाव धर्म के आधार पर नहीं लड़ा। यह इस बात से साबित होता है कि इन चुनावों में पदम सीट से हमारा निर्वाचित पार्षद बौद्ध है। सच्चाई यह है कि धर्म अभी लद्दाख में कोई मुद्दा नहीं हैं। इस बार एकमात्र मुद्दा राज्य का विभाजन है। भाजपा दुनिया को बता रही थी कि लद्दाख के लोग कश्मीर से अलग होना चाहते हैं और अनुच्छेद 370 को हटाना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि इन दो मुद्दों पर लद्दाख के लोग भी उतने ही गुस्से में हैं जितने घाटी और जम्मू संभाग के लोग।”

एनसी उपाध्यक्ष ने कहा कि न तो केंद्र सरकार और न ही भाजपा, जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए तैयार है।

उमर ने कहा, “केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही पंचायत और शहरी विकास निकाय चुनाव होंगे। अब हम जो सुन रहे हैं वह यह है कि ये चुनाव निकट भविष्य में नहीं होंगे।”

उन्होंने आरोप लगाया कि अगर पार्टी की चलती तो भाजपा जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव भी नहीं कराती। “लोकसभा चुनाव कराना उनके लिए एक मजबूरी है। कल के नतीजों के बाद, मुझे डर है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में और देरी होगी क्योंकि भाजपा को अपनी हार का यकीन है।”

उमर ने यह भी कहा कि एक राजनीतिक दल के रूप में, यह समझ में आता है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्यों नहीं चाहती है। “लेकिन मैं चुनाव आयोग से निराश हूं। आज प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाएगा।”

“मैं चुनाव आयुक्त से पूछना चाहता हूं कि ये कारक क्या हैं? सच तो यह है कि केवल एक ही कारक है और वह है ‘डर’।

उमर ने कहा, ‘अभी तक बीजेपी उपराज्यपाल के पीछे छुपी हुई थी और अब चुनाव आयोग के पीछे छिप रही है।’

उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के हालिया बयान पर भी सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के 80 फीसदी लोग चाहते हैं कि मौजूदा व्यवस्था जारी रहे।

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि वह सर्वे कहां आयोजित किया गया था? अगर वे खुद को अंक दे रहे हैं तो 20 प्रतिशत को क्यों छोड़ा? यह क्यों नहीं कहा जाए कि 100 प्रतिशत लोग जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं चाहते हैं।”

उमर ने कहा कि कल को यही बहाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना सकते हैं और तब वे फैसला कर सकते हैं कि देश में लोकसभा चुनाव की जरूरत नहीं है।

श्रीनगर, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) चुनाव में एनसी-कांग्रेस गठबंधन की व्यापक जीत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के खिलाफ लोगों के गुस्से का नतीजा है।

सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उमर ने गठबंधन पर भरोसा जताने और इन चुनावों में भाजपा की हार के लिए कारगिल के लोगों को धन्यवाद दिया।

उन्होंने कहा, “भाजपा अब कहेगी कि यह कारगिल में मुस्लिम मतदाताओं के कारण था। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या 5 अगस्त 2019 को किया गया जम्मू-कश्मीर का विभाजन धार्मिक आधार पर था। अगर ऐसा था, तो मुझे भाजपा को याद दिलाना होगा कि लद्दाख एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, हालांकि वहां बौद्ध आबादी की एक बड़ी संख्या है।”

उन्होंने कहा, ”हमने ये चुनाव धर्म के आधार पर नहीं लड़ा। यह इस बात से साबित होता है कि इन चुनावों में पदम सीट से हमारा निर्वाचित पार्षद बौद्ध है। सच्चाई यह है कि धर्म अभी लद्दाख में कोई मुद्दा नहीं हैं। इस बार एकमात्र मुद्दा राज्य का विभाजन है। भाजपा दुनिया को बता रही थी कि लद्दाख के लोग कश्मीर से अलग होना चाहते हैं और अनुच्छेद 370 को हटाना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि इन दो मुद्दों पर लद्दाख के लोग भी उतने ही गुस्से में हैं जितने घाटी और जम्मू संभाग के लोग।”

एनसी उपाध्यक्ष ने कहा कि न तो केंद्र सरकार और न ही भाजपा, जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए तैयार है।

उमर ने कहा, “केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही पंचायत और शहरी विकास निकाय चुनाव होंगे। अब हम जो सुन रहे हैं वह यह है कि ये चुनाव निकट भविष्य में नहीं होंगे।”

उन्होंने आरोप लगाया कि अगर पार्टी की चलती तो भाजपा जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव भी नहीं कराती। “लोकसभा चुनाव कराना उनके लिए एक मजबूरी है। कल के नतीजों के बाद, मुझे डर है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव में और देरी होगी क्योंकि भाजपा को अपनी हार का यकीन है।”

उमर ने यह भी कहा कि एक राजनीतिक दल के रूप में, यह समझ में आता है कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्यों नहीं चाहती है। “लेकिन मैं चुनाव आयोग से निराश हूं। आज प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जाएगा।”

“मैं चुनाव आयुक्त से पूछना चाहता हूं कि ये कारक क्या हैं? सच तो यह है कि केवल एक ही कारक है और वह है ‘डर’।

उमर ने कहा, ‘अभी तक बीजेपी उपराज्यपाल के पीछे छुपी हुई थी और अब चुनाव आयोग के पीछे छिप रही है।’ उन्होंने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के हालिया बयान पर भी सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के 80 फीसदी लोग चाहते हैं कि मौजूदा व्यवस्था जारी रहे।

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि वह सर्वे कहां आयोजित किया गया था? अगर वे खुद को अंक दे रहे हैं तो 20 प्रतिशत को क्यों छोड़ा? यह क्यों नहीं कहा जाए कि 100 प्रतिशत लोग जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं चाहते हैं।”

उमर ने कहा कि कल को यही बहाना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना सकते हैं और तब वे फैसला कर सकते हैं कि देश में लोकसभा चुनाव की जरूरत नहीं है।

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