देश

किसी प्रत्याशी को बाहरी कहना संविधान का अपमान है, ऐसा कहने वालों को माफी मांगनी चाहिए?

अभिमनोज. आजादी के बाद देश के सशक्त संविधान और प्रजातंत्र ने सभी भारतीयों को यह अधिकार दिया है कि- यह देश सभी का है, कोई भी, कहीं भी रह सकता है, कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है, लेकिन…. कुछ कमजोर मानसिकता के लोग चुनाव के समय स्वार्थ के चलते किसी भी उम्मीदवार को बाहरी करार देते हैं?

देश का राजनीतिक इतिहास देखें तो हजारों नेता मिल जाएंगे, जो अपने शहर, अपने राज्य को छोड़कर दूसरे शहर गए, वहीं के होकर रह गए, वहां चुनाव लड़े, जीते और उस क्षेत्र का बेमिसाल विकास भी किया!  देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी गुजरात छोड़कर वाराणसी (उप्र) और कांग्रेस नेता राहुल गांधी केरल के वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीते. इन दोनों नेताओं को तो किसी स्थानीय नागरिकों सहित राजनीतिक दल के व्यक्तियों ने भी बाहरी उम्मीदवार नहीं माना.  इतना ही नहीं बाहरी प्रत्याशी होने के कारण  विकास पर ग्रहण लग जाता  .

उत्तरप्रदेश के कानपुर में जन्मे कोलकाता में शिक्षा प्राप्त मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, छिंदवाड़ा को वर्षों  पूर्व राजनीतिक कर्मस्थली बनाकर प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति के चमकदार शख्सियत बने. वे कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे. उन्होंने छिंदवाड़ा क्षेत्र में विकास के जो आयाम गढ़े,वह लोगों के बीच चर्चा का विषय रहा  है.
राजस्थान के कुशलगढ़, बांसवाड़ा के नेता दिवंगत महेश जोशी, इंदौर आ गए, वहां रहकर सेवा की, चुनाव जीते, मंत्री बने, तो क्या वे बाहरी उम्मीदवार थे?

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने मध्यप्रदेश के लिए जितना काम किया, उसका पांच प्रतिशत भी राजस्थान के लिए काम करने का अवसर उन्हें नहीं मिला?
और…. ऐसे ही सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे, जो थे तो लोकल, लेकिन अपने क्षेत्र के विकास के लिए कुछ भी नहीं कर पाए?
जाहिर है, स्थानीय-बाहरी जैसे मुद्दों का उपयोग लोग अपनी सियासी कमजोरियां दबाने के लिए करते हैं!
उल्लेखनीय है कि मुंबई में ऐसी ही धारणा को लोगों ने अस्वीकार कर दिया और ऐसे विचारों का नेतृत्व करनेवाले नेताओं को भी नकार दिया?
यदि मुंबई में भी स्थानीय-बाहरी जैसा मुद्दा गर्म रहता, तो उत्तर प्रदेश का अमिताभ बच्चन सुपर स्टार कैसे बनता, इंदौर की लता मंगेशकर को बॉलीवुड में इतना सम्मान कैसे मिलता, इंदौर में जन्मे सलमान खान को कौन आगे बढ़ने देता?
बाहरी और स्थानीय जैसे मुद्दे उठाने वालों का खुलकर विरोध करना चाहिए, ताकि जबलपुर के विकास पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों को सही सबक मिल सके!
बाहरी शब्द का उपयोग बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है, आजादी के आंदोलन में देश के अनेक नेताओं को अपना घर-परिवार छोड़ना पड़ा, यही नहीं, विभाजन के समय लाखों लोग पाकिस्तान छोड़कर हिन्दुस्तान आए, क्या वे सब बाहरी हो गए?

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