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Aditya-L1 पहले 800 किमी दूर ही स्थापित होने वाला था, फिर बदली योजना; मिशन से जुड़े वैज्ञानिक ने बताया पूरा प्लान

नई दिल्ली: भारत का पहला सोलर मिशन आदित्य एल1 अंतरिक्ष में अपने सफर के लिए उड़ान भर चुका है. 2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसे लॉन्च कर दिया गया. आदित्य एल1 को पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी के बीच एल1 कक्षा में स्थापित किया जाएगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे पहले सिर्फ 800 किमी दूर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने की योजना थी. बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA) के प्रोफेसर जगदेव सिंह ने ये जानकारी दी है.

प्लाज्मा तापमान का करेगा अध्ययन
ये जगदेव सिंह ही थे, जिनके शुरुआती प्रयासों से विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ पेलोड का विकास हुआ, जिसे आदित्य एल1 अंतरिक्ष में लेकर जाएगा. प्रोफेसर जगदेव सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि इस मिशन के साथ, हम सूर्य के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने में सक्षम होंगे, जिसमें तापमान प्लाज्मा भी शामिल है. मिशन इस बात का पता लगाने की कोशिश करेगा कि प्लाज्मा तापमान इतना अधिक क्यों हो जाता है, ऐसी क्या प्रक्रिया होती है जिनके कारण ठंडा प्लाज्मा गर्म हो जाता है.

पहले 800 किमी दूर ही स्थापित करने का था प्लान
प्रोफेसर जगदेव सिंह ने बताया कि प्रारंभिक योजना इसे 800 किमी की निचली पृथ्वी की कक्षा में लॉन्च करने की थी, लेकिन 2012 में इसरो के साथ चर्चा के बाद ये फैसला लिया गया कि मिशन को सूर्य-पथ्वी प्रणाली के एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट -1) के चारों ओर एक हेलो कक्षा में डाला जाएगा. इस प्वाइंट की पृथ्वी से दूरी 15 लाख किलोमीटर है. यहां पर पृथ्वी और सूर्य एक दूसरे के गुरुत्वाकर्षण को बेअसर कर देते हैं, जिससे वस्तुएं यहां स्थिर बनी रहती हैं.

कैसे पड़ी इस मिशन की नींव?
सिंह ने बताया कि 16 फरवरी 1980 को भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण हुआ था. उस समय आईआईए के फाउंडर-डायरेक्टर एम के वेणु बाप्पु ने जगदेव सिंह सूर्य के बाहरी वातावरण का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया. 1980 से 2010 के दौरान सिंह ने 10 अभियान चलाए, लेकिन समस्या थी कि ग्रहण के दौरान केवल 5-7 मिनट ही मिलते हैं. लंबी स्टडी के लिए ये काफी नहीं है. इसके बाद उन्होंने अध्ययन में मदद के लिए इसरो और अन्य एजेंसियों में लोगों से बात की. 2009 के आसपास ऐसे संभावित मिशन के बारे में बातचीत शुरू हुई और 2012 में इसकी ठोस योजना विकसित हुई.

कितने दिन में पहुंचेगा और कब तक रहेगा?
आदित्य एल1 को लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 तक पहुंचने में 127 दिन लगेंगे. इसके बाद कुछ परीक्षण किए जाएंगे. सिंह के मुताबिक, अगले साल फरवरी या मार्च तक डेटा आना शुरू हो जाएगा. वैसे तो एक सैटेलाइट की उम्र 5 साल तक न्यूनतम रहने की संभावना की जाती है, लेकिन आदित्य एल1 10 से 15 साल तक डेटा दे सकता है. खास बात ये है कि ये अंतरिक्ष में एल1 प्वाइंट पर रखा जाएगा जो एक स्थिर बिंदु है.

L1 प्वाइंट पर गुरुत्वाकर्षण न होने के चलते इसे कोई सघर्ष नहीं करना होगा, इसलिए इसकी उम्र अधिक होने की उम्मीद की जा रही है. मिशन जब डेटा देना शुरू करेगा तो ये पहली बार होगा कि हम विजिबल इमिशन लाइन पर डेटा हासिल करेंगे. अभ तक कोई भी लगातार डेटा हासिल करने में सक्षम नहीं हो पाया है.

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