ज्योतिष

हर संकट से मुक्ति दिलाता है मंगलवार के दिन किया ये काम, शनि देव भी हो जाते हैं प्रसन्न

शास्त्रों में हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है. मंगलवार का दिन हनुमान जी की पूजा का दिन है. कहते हैं कि मंगलवार के दिन अगर सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ हनुमान जी की पूजा की जाए, तो व्यक्ति के सभी दुख-संकट जल्द दूर हो जाते हैं. मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा पाठ का भी विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि अगर विधिपूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए, तो व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है और शनि देव की कृपा भी प्राप्त होती है.

हनुमान चालीसा पाठ की विधि

– ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. इसके बाद ही साफ कपड़े पहनें. इसके बाद ही गंगाजल से स्नान कराएं.

– हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए आसन का प्रयोग करें और ध्यान रखें कि आसन लाल रंग का होना चाहिए.

– हनुमान चालीसा का पाठ मंगलवार या फिर शनिवार के दिन से शुरू करें. बता दें कि पाठ लगातार 40 दिनों तक करें. इसके अलावा, हर शनिवार और मंगलवार को मंदिर जरूर जाएं.

– बता दें कि इस पाठ के दौरान व्यक्ति तामसिक भोजन या मदिरा आदि से परेहज करे.

– हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी की मूर्ति पर चमेली का तेल और सिंदूर आदि अर्पित कर दें.

– इसके अलावा, हनुमान जी की कृपा पाने के लिए भगवान राम का नाम लें. साथ ही, हनुमान जी का स्मरण करने के बाद ही हनुमान चालीसा का पाठ शुरू करें.

– हनुमान जी के भोग में तुलसी के पत्ते का इस्तेमाल अवश्य करें.

हनुमान चालीसा पाठ 

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
असि कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
असि वर दीन्ह जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को भावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

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