देश

पहली बार, कोयला खदान को कोर्ट ने कहा मानवाधिकारों का उल्लंघन

ऑस्ट्रेलिया में क्वींसलैंड लैंड कोर्ट ने कहा है कि कोयले की खदान का आर्थिक लाभ इतना नहीं है कि भविष्य की पीढ़ी के मानवाधिकारों को दांव पर लगाया जा सके. देश के अरबपति उद्यमी क्लाइव पामर की कंपनी वाराताह कोल ने राज्य के गैलीली बेसिन की सबसे बड़ी कोयला खदान में खुदाई का प्रस्ताव रखा था.

यह कोयला खदान शुरू होती है, तो 30 साल तक खनन होगा और इससे हर साल चार करोड़ टन कोयला निकालकर दक्षिण-पूर्व एशिया भेजा जाएगा. इस प्रस्ताव को आदिवासी समूह ‘यूथ वर्डिक्ट’ के नेतृत्व में पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चुनौती दी थी. उनकी याचिका का आधार यह था कि कोयला खदान जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगी और इससे आदिवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा.

ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी पर्यावरण समूह ने कोयला खदान को जलवायु परिवर्तन में योगदान देकर मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार साबित किया है. क्वींसलैंड लैंड कोर्ट की अध्यक्ष फ्लोएर किंगहैम ने कहा कि वह वाराताह कोल की अर्जी को मंजूरी की सिफारिश नहीं करेंगी. उन्होंने कोर्ट में कहा कि यह खदान जीवन के अधिकार, आदिवासियों के सांस्कृतिक आधार, बच्चों के अधिकार, संपत्ति के अधिकार, निजता के अधिकार और समान रूप से मानवाधिकारों को सीमित करती है.

मानवाधिकार ज्यादा अहम

वाराताह कोल की दलील थी कि गैलीली कोल प्रोजेक्ट अपने 30 साल के दौरान सालाना ढाई अरब डॉलर का आर्थिक योगदान करेगा. किंगहैम ने कहा कि मानवाधिकारों की सुरक्षा की अहमियत दक्षिण-पूर्व एशिया की ऊर्जा सुरक्षा और कोयला खदान से होने वाले आर्थिक लाभ पर भारी पड़ती है.

किंगहैम ने कहा, “थर्मल कोयले की मांग कम हो रही है. लिहाजा बहुत संभव है कि अपने जीवनकाल में यह खदान गैरजरूरी हो जाए और सारे आर्थिक लाभ पूरे ना कर पाए. खनन का पर्यावरणीय नुकसान और क्वींसलैंड के लोगों को जलवायु परिवर्तन के कारण जो कीमत चुकानी होगी, उसे भी ध्यान में नहीं रखा गया है.”

अर्थव्यवस्था तो शायद सुधर जाए लेकिन पर्यावरण का क्या?

अदालत के फैसले पर कार्यकर्ताओं ने खुशी जताई. ‘यूथ वर्डिक्ट’ की अगुआ मुरवाह जॉनसन ने कहा कि फैसला सुनकर उनकी आंखें गीली हो गई थीं. आदिवासी मूल की जॉनसन ने कहा, “मैं बहुत खुश हूं. तीन साल लगे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि सरकार लैंड कोर्ट की सिफारिशों को सुनेंगी.”

अडाणी की परियोजना

अपनी तरह के दुनिया के इस पहले फैसले पर पर्यावरणविदों ने भी खुशी जताई है और कहा है कि इसका असर भविष्य में कोयला खनन की परियोजनाओं पर हो सकता है. हालांकि, वाराताह कोल ने अभी किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है, लेकिन राज्य सरकार ने कहा है कि वह “कोर्ट की सिफारिशों पर ध्यानपूर्वक विचार करेगी.”

जिस गैलीली बेसिन में यह कोयला खदान प्रस्तावित है, वह ऑस्ट्रेलिया का एक विशाल इलाका है, जिसमें खनिजों की भरमार है. लेकिन इस इलाके में अभी सिर्फ एक कंपनी को ही खनन की इजाजत मिली है और वह है भारत की अडाणी माइन्स. कई साल तक चले विवादों के बाद कारमाइकल इलाके में अडाणी की खानें अब सुचारू हो चुकी हैं और पिछले साल उसने कोयले की पहली खेप भारत भेज दी थी.

कारमाइकल में कोयला खनन को लेकर आज भी ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरण कार्यकर्ता विरोध कर रहे हैं. ताजा फैसले के बाद यदि वाराताह कोल का प्रस्ताव प्रभावित होता है, तो अडाणी विरोधी आंदोलन को नई ऊर्जा मिल सकती है.

‘क्लाइमेट अनैलिटिक्स’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस इलाके में प्रस्तावित कुल नौ खदानों से जितना कोयला निकलेगा (लगभग 330 टन), उसके जलने सेसालाना 85.7 करोड़ टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित होगी.

सम्बंधित समाचार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button