देश
Jabalpur Cantonment: रक्षा मंत्रालय के फैसले ने बढ़ाई धड़कन
जबलपुर। केंटोन्मेंट बोर्ड जबलपुर सहित देश की सभी 62 बोर्ड के सिविल एरिया को निकटतम निकाय को सौंपे जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगने संबंधी खबरें सामने आने के बाद बंगला और बगीचा क्षेत्रों के अतिक्रमणकारियों की सांसे फूलने लगी है।
दरअसल केंट बोर्ड के अंतर्गत आने वाले सिविल एरिया जिसमें मुख्य रूप से बाजार आते हैं उसे तो निकायों के हवाले कर दिया जाएगा। लेकिन बंगला और बगीचा क्षेत्रों में अवैध रूप से बने मकानों का क्या होगा। इसकों लेकर अभी रक्षा मंत्रालय खामोश है। वहीं केंट में सक्रिय भू माफिया को भी समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या होने वाला है।
उल्लेखनीय है कि 26 अप्रैल को रक्षा मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश के योल केंट बोर्ड को भंग करते हुए उसके सिविल एरिया को नगर परिषद में शामिल किए जाने का नोटिफिकेंशन जारी कर दिया था। जिसके बाद से हलचल तेज हो गई थी। वहीं 1 मई की शाम नेशनल मीडिया में ऐसी रिपोर्ट आना शुरू हो गई कि रक्षा मंत्रालय ने सभी 62 केंट बोर्ड को भंग करते हुए उनके सिविल एरिया को निकायों को सौंपने का निर्णय ले लिया है।
यह प्रक्रिया तो काफी समय से चल रही थी,लेकिन पहले उसे चरण बद्ध चलाया जा रहा था। लेकिन अचानक सभी केंट बोर्ड को लेकर रक्षा मंत्रालय द्वारा निर्णय लिया जाना चर्चा का विषय बन गया। हालांकि अधिकारिक तौर पर अभी तक कोई आदेश जारी नहीं होने की बात स्थानीय बोर्ड के अधिकारी कह रहे हैं।
चुनाव याचिकाओं को लेकर लिया निर्णय ..!
जानकारों का कहना है कि अचानक रक्षा मंत्रालय ने सभी 62 केंट बोर्ड के भंग करने और सिविल एरिया निकायों को सौंपे जाने के निर्णय जो लिया है उसके पीछे कहीं न कहीं चुनाव याचिकाएं भी एक कारण है। दरअसल कई प्रदेशों में केंट बोर्ड चुनाव कराए जाने की मांग को लेकर याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की गई है। जबलपुर हाईकोर्ट में भी एक याचिका लंबित है। उक्त याचिकाओं में चुनाव जल्द कराए जाने की मांग रखी गई है। ऐसे में रक्षा मंत्रालय अगर कोर्ट को यह बताता है कि केंट बोर्ड तो निकायों को सौंपा जाना है। इससे कोर्ट से रक्षा मंत्रालय को राहत मिल जाएगी। वहीं बात साफ है कि जब तक केंट बोर्ड की सिविल आबादी निकायों में शामिल नहीं हो जाती, तब तक वहां चुनाव होने की गुंजाईस कम है।
जानकारों का कहना है कि अचानक रक्षा मंत्रालय ने सभी 62 केंट बोर्ड के भंग करने और सिविल एरिया निकायों को सौंपे जाने के निर्णय जो लिया है उसके पीछे कहीं न कहीं चुनाव याचिकाएं भी एक कारण है। दरअसल कई प्रदेशों में केंट बोर्ड चुनाव कराए जाने की मांग को लेकर याचिकाएं हाईकोर्ट में दाखिल की गई है। जबलपुर हाईकोर्ट में भी एक याचिका लंबित है। उक्त याचिकाओं में चुनाव जल्द कराए जाने की मांग रखी गई है। ऐसे में रक्षा मंत्रालय अगर कोर्ट को यह बताता है कि केंट बोर्ड तो निकायों को सौंपा जाना है। इससे कोर्ट से रक्षा मंत्रालय को राहत मिल जाएगी। वहीं बात साफ है कि जब तक केंट बोर्ड की सिविल आबादी निकायों में शामिल नहीं हो जाती, तब तक वहां चुनाव होने की गुंजाईस कम है।
चरणबद्ध ही चलेगी प्रक्रिया —
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि केंट बोर्ड के सिविल एरिया को निकायों के हवाले किए जाने की प्रक्रिया चरण बद्ध ही चलेगी। हिमाचल के योल केंट का नोटिफिकेंशन जारी होने के बाद राजस्थान के नशीराबाद – अजमेर केंट बोर्ड के प्रस्ताव पर मुहर लगनी है। उसके बाद उत्तरखंड के 7 केंट बोर्ड को लेकर निर्णय लिया जाएगा। सीधे तौर पर कहां जाए तो पहले छोटे और कम सिविल आबादी वाले केंट बोर्ड को भंग किया जाएगा। उसके बाद बाद बडे़ केंट बोर्ड का नंबर आएगा। इस प्रक्रिया में अगले तीन से चार साल लग सकते हैं। इस दौरान तक केंट बोर्ड में अधिकारी काम करते रहेंगे।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि केंट बोर्ड के सिविल एरिया को निकायों के हवाले किए जाने की प्रक्रिया चरण बद्ध ही चलेगी। हिमाचल के योल केंट का नोटिफिकेंशन जारी होने के बाद राजस्थान के नशीराबाद – अजमेर केंट बोर्ड के प्रस्ताव पर मुहर लगनी है। उसके बाद उत्तरखंड के 7 केंट बोर्ड को लेकर निर्णय लिया जाएगा। सीधे तौर पर कहां जाए तो पहले छोटे और कम सिविल आबादी वाले केंट बोर्ड को भंग किया जाएगा। उसके बाद बाद बडे़ केंट बोर्ड का नंबर आएगा। इस प्रक्रिया में अगले तीन से चार साल लग सकते हैं। इस दौरान तक केंट बोर्ड में अधिकारी काम करते रहेंगे।