एमपी: आत्मसमर्पण के 50 साल बाद चंबल के डकैत पंचम भूख हड़ताल पर, कहा अन्याय बर्दाश्त नहीं
दस्यु पंचम सिंह के आतंक से समूचा बीहड़ 1960 के दशक में थर्राता था। उसके सामने आने से पुलिस भी कतराती थी। चंबल में 72 लोगों को जिंदा जला डाला था, इन पर 300 से अधिक प्रकरण पंजीबद्ध थे। तब इन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था। अब 50 वर्ष बाद एक बार फिर पंचम चर्चाओं में है। लहार नगरपालिका का नोटिस मिलने के बाद अपने हक के लिए पंचम 28 फरवरी से अनशन पर डटे हुए हैं।क्या है नोटिस में पंचम के आश्रम वाले रजिस्टर्ड एग्रीमेंट को नगर पालिका ने 41 वर्ष बाद खारिज कर दिया है। लहार नगर पालिका द्वारा नोटिस जारी किया गया है जिसमें अफसरों ने आश्रम को दुकान बताकर उसे तोड़ने को कहा है। इस संबंध में पंचम सिंह का कहना है कि यह आश्रम किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा। पंचम के मुताबिक उन्होंने 1972 में जौरा के गांधी आश्रम में आत्मसमर्पण किया था। जिसके बाद वह मुंगावली स्थित खुली जेल में रहे। रिहा होकर भिंड जिले के लहार ब्लॉक स्थित अपने गांव सींगपुरा पहुंच गए। घर पर मन नहीं लगा। सजा काटने के दौरान ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका जेल में आई थीं। सत्संग से उनका हृदय परिवर्तन हो गया। गांव छोड़कर वह लहार स्थित मंगलादेवी मंदिर पहुंचे जहां मंदिर के पास खाली पड़ी सरकारी जमीन पर नजर पड़ी। इस पर उनके द्वारा प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का छोटा सा आश्रम बना लिया। जिसका नाम उन्होंने गीता पाठशाला रखा। जहां कई लोग आकर प्रभु भक्ति करने लगे।
बीहड़ में उतरने दे डाली धमकी पंचम के मुताबिक तकरीबन चार वर्ष पूर्व प्रशासनिक अधिकारी आश्रम आए। जिनके द्वारा कहा गया कि यह सरकारी जमीन है जिसको खाली करना होगा। उन्होंने मना कर दिया। आश्रम बंद कराने की स्थिति में दोबारा बीहड़ में कूदने की धमकी तक दे डाली। जिसकी जानकारी कलेक्टर और एसपी तक पहुंची तो अगले तत्कालीन एसपी टीम के साथ आश्रम पहुंचे। जिनके द्वारा कहा गया कि आश्रम नहीं टूटेगा। किंतु जमीन सरकारी है जिससे मालिकाना हक आपको नहीं मिलेगा। तत्कालीन एसपी ने सरकारी जमीन पर बने आश्रम को हटाए बगैर नगरपालिका को दुकानों के लिए जमीन दिए जाने का सुझाव रखा।