‘बेटी विवाहित होने पर भी बेटी ही रहेगी’, सैनिक कल्याण और पुनर्वास विभाग की जेंडर स्टीरियोटाइप मानदंड को कर्नाटक HC ने किया खारिज
एक विवाहित बेटी एक बेटी की तरह ही रहती है, जिस तरह से एक विवाहित बेटा एक बेटा रहता है, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सैनिक कल्याण बोर्ड के दिशानिर्देश को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है, जिसमें द्वारा 25 वर्ष से कम आयु की विवाहित बेटियों को आश्रित पहचान पत्र (आई-कार्ड) जारी करने के लिए अपात्र ठहराया गया है। वहीं, यदि आई-कार्ड जारी किया जाता है तो उन्हें पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित श्रेणी में सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने के योग्य बनाता है।
बेटी विवाह के बाद भी बेटी ही रहती है, जिस तरह से एक बेटा विवाह के बाद बेटा रहता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सैनिक कल्याण बोर्ड के दिशानिर्देश को खारिज करते हुए एक अहम आदेश दिया। बता दें कि कोर्ट का आदेश विवाहित बेटियों को पूर्व रक्षा कर्मियों के बच्चों के लिए आश्रित कार्ड का लाभ उठाने से रोके जाने के संदर्भ में आया है। यदि पुत्र पुत्र बना रहता है, विवाहित या अविवाहित; एक बेटी बेटी ही रहेगी, विवाहित या अविवाहित। यदि विवाह के कार्य से पुत्र की स्थिति में परिवर्तन नहीं होता है; विवाह का अधिनियम बेटी की स्थिति को बदल नहीं सकता है और न ही बदलेगा, “कर्नाटक एचसी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 2 जनवरी को एक आदेश में फैसला सुनाया।
हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि वह बलों में बदलते लिंग समीकरणों के कारण पूर्व रक्षा कर्मियों को पूर्व सैनिकों के रूप में संदर्भित करना बंद करे और पूर्व-सैनिकों के लिंग-तटस्थ नामकरण पर विचार करे। कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने यह आदेश सेना के एक पूर्व सैनिक सूबेदार रमेश खंडप्पा पुलिस पाटिल की 31 वर्षीय बेटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया, जो वर्ष 2001 में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान खानों को साफ करते समय शहीद हो गए थे।