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राज्य बदले पर जातिगत आरक्षण का लाभ न देने पर मांगा जवाब

हाई कोर्ट ने राज्य शासन से सवाल किया है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में निवास बदलने पर जातिगत आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया जा रहा। न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने इस सिलसिले में केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किए हैं। कोर्ट ने अंतरिम आदेश के तहत माध्यमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन कर दिया है।

याचिकाकर्ता बालाघाट निवासी चित्रारेखा देशमुख व वैशाली बिसेन की ओर से अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह, आरजी वर्मा व रूप सिंह मरावी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं का जन्मस्थान गोंदिया महाराष्ट्र है। करीब 10 साल पहले शादी के बाद से ही दोनों मध्य प्रदेश के बालाघाट में स्थायी रूप से निवासरत है। संपूर्ण भारत में किसी भी प्रदेश में निवास करने एवं स्थाई रूप से बसने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत मौलिक अधिकार है। अनुच्छेद 16(1) के तहत जन्म स्थान के आधार पर लोक पद पर नौकरियों में विभेद का प्रतिषेध किया गया है। याचिकाकर्ता कुनबी तथा पवार जाति की हैं , जिनकी शादी भी उनकी ही जाति में हुई है। याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018 में माध्यमिक शिक्षक परीक्षा में सम्मिलित हुई और ओबीसी कैटेगरी के तहत उत्तीर्ण घोषित हुईं। दस्तावेज सत्यापन के लिए 22 नवंबर, 2022 को जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बालाघाट में उपस्थित हुईं तो याचिकाकर्ताओं को अमान्य घोषित कर दिया गया। कारण दिया गया कि उन्होंने मध्य प्रदेश के सक्षम अधिकारी का जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया। जिले में जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया तो आवेदन ही स्वीकार नहीं किया जाता हैं। अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह ने दलील दी कि किसी व्यक्ति का जाति प्रमाण पत्र उसके पिता और माता की जाति के आधार पर ही जारी किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी के निर्णय के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी जाति नहीं बदल सकता है।

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